मंत्रालय के बारे में

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र पिछले 5 दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था के बेहद जीवंत और गतिशील क्षेत्र के रूप में उभरा है। एमएसएमई न केवल बड़े उद्योगों की तुलना में कम पूंजीगत लागत पर बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं अपितु ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगिकीकरण में भी मदद करते हैं, इस प्रकार क्षेत्रीय असंतुलन को कम करते हुए, राष्ट्रीय आय और संपत्ति के अधिक समान वितरण का भरोसा दिलाते हैं। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के पूरक हैं और यह क्षेत्र देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में बहुत अधिक योगदान देते हैं ।

खादी हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रपिता की शानदार विरासत है। खादी और ग्रामोद्योग (केवीआई) भारत की दो राष्ट्रीय विरासत हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में केवीआई के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक यह है कि यह बहुत कम प्रति व्यक्ति निवेश पर रोजगार सृजित करता है। केवीआई क्षेत्र न केवल देश के विशाल ग्रामीण क्षेत्रों की संसाधित वस्तुओं की बुनियादी जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि ग्रामीण कारीगरों को स्थायी रोजगार भी प्रदान करता है। आज खादी और ग्रामोद्योग उत्कृष्ट, विरासत उत्पाद उपलब्ध कराते हैं, जो 'देशी' के साथ-साथ नैतिक भी हैं । इसके पास समाज के मध्य और उच्च श्रेणी के संभावित मजबूत ग्राहक भी हैं।

कयर उद्योग कृषि आधारित पारंपरिक उद्योग है, जिसका उद्भव केरल राज्य में हुआ है और तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, असम, त्रिपुरा आदि जैसे अन्य नारियल उत्पादक राज्यों में उगाया जाता है। यह एक है निर्यात उन्मुख उद्योग है और कयर जियोटेक्स्टाइल आदि जैसे तकनीकी हस्तक्षेपों और विविध उत्पादों के माध्यम से मूल्य संवर्धन द्वारा निर्यात को बढ़ाने की अधिक संभावना है। कयर उत्पादों की स्वीकार्यता इसकी 'पर्यावरण अनुकूल' छवि के कारण तेजी से बढ़ी है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) मौजूदा उद्यमों को सहायता प्रदान करने और नए उद्यमों को प्रोत्साहित करके संबंधित मंत्रालयों/विभागों, राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के सहयोग से, खादी, ग्रामोद्योग और कयर उद्योग सहित एमएसएमई क्षेत्र की वृद्धि और विकास को बढ़ावा देकर एक जीवंत एमएसएमई क्षेत्र की कल्पना करता है ।

सूक्ष्म; लघु और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006 एमएसएमई के साथ-साथ क्षेत्र के कवरेज और निवेश सीमा को प्रभावित करने वाले नीतिगत मुद्दों के समाधान के लिए अधिसूचित किया गया था। इस अधिनियम में इन उद्यमों के विकास के साथ-साथ उनकी प्रतिस्पर्धा में भी वृद्धि की सुविधा है । यह "एंटरप्राइज़" की अवधारणा को पहचान दिलाने के लिए पहले बार कानूनी ढांचा प्रदान करता है जिसमें विनिर्माण और सेवा दोनों इकाइयां शामिल हैं। यह पहली बार मध्यम उद्यमों को परिभाषित करता है और इन उद्यमों के तीन स्तरों, अर्थात् सूक्ष्म, लघु और मध्यम को एकीकृत करने का प्रयास करता है। इस अधिनियम में हितधारकों के सभी वर्गों, विशेष रूप से उद्यमों के तीन वर्गों के संतुलित प्रतिनिधित्व और सलाहकार कार्यों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ राष्ट्रीय स्तर पर एक सांविधिक सलाहकार तंत्र का प्रावधान किया गया है । इन उद्यमों के संवर्धन, विकास और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट निधियों की स्थापना, इस उद्देश्य के लिए योजनाओं / कार्यक्रमों की अधिसूचना, प्रगतिशील ऋण नीतियां और कार्य, सूक्ष्म और लघु उद्यमों के उत्पादों और सेवाओं को सरकारी खरीद में प्राथमिकता, सूक्ष्म और लघु उद्यमों को देरी से भुगतान की समस्याओं को कम करने के लिए अधिक प्रभावी तंत्र और इन उद्यमों द्वारा व्यवसाय बंद करने के लिए एक योजना का आश्वासन अधिनियम की कुछ अन्य विशेषताएं हैं।

9 मई, 2007 को, भारत सरकार (कार्य आबंटन) के नियम, 1961 में संशोधन के बाद, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई मंत्रालय) का निर्माण करने के लिए तत्कालीन लघु उद्योग मंत्रालय तथा कृषि और ग्रामीण उद्योग मंत्रालय का विलय कर दिया गया था । यह मंत्रालय अब नीतियां तैयार करता है और कार्यक्रमों, परियोजनाओं और योजनाओं को बढ़ावा/सुविधा प्रदान करता है तथा एमएसएमई को सहायता प्रदान करने और उन्हें उचित अनुपात में बढ़ावा देने के लिए और उनके कार्यान्वयन का अनुश्रवण करता है।

एमएसएमई के संवर्धन और विकास की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। तथापि, भारत सरकार, विभिन्न पहल के माध्यम से राज्य सरकारों के प्रयासों को बढ़ावा देती है। एमएसएमई और उसके संगठनों की भूमिका उद्यमशीलता, रोजगार और आजीविका के अवसरों को प्रोत्साहित करने और बदले हुए आर्थिक परिदृश्य में एमएसएमई की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के प्रयासों में राज्यों की सहायता करना है। मंत्रालय और उसके संगठनों द्वारा शुरू की गयी योजनाओं/ कार्यक्रमों को ये सुविधाएं प्रदान की जाती हैं i) वित्तीय संस्थानों/ बैंकों से पर्याप्त मात्रा में ऋण का प्रवाह; ii) प्रौद्योगिकी उन्नयन और आधुनिकीकरण के लिए सहायता; iii) एकीकृत अवसंरचनात्मक सुविधाएं; iv) आधुनिक परीक्षण सुविधाओं और गुणवत्ता प्रमाणन; v) आधुनिक प्रबंधन कार्यों तक पहुंच; vi) उपयुक्त प्रशिक्षण सुविधाओं के माध्यम से उद्यमिता विकास और कौशल उन्नयन; vii) उत्पाद विकास,डिजाइन हस्तक्षेप और पैकेजिंग के लिए सहायता; viii) कारीगरों और श्रमिकों के कल्याण; ix) घरेलू और निर्यात बाजारों में बेहतर पहुंच के लिए सहायता और x) इकाइयों और उनके समूहों की क्षमता-निर्माण और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए क्लस्टर-वार उपाय ।

संगठनात्मक ढांचा

एमएसएमई मंत्रालय में लघु और मध्यम उद्यम (एसएमई) प्रभाग और कृषि एवं ग्रामीण उद्योग (एआरआई) प्रभाग नामक दो प्रभाग हैं। एसएमई प्रभाग को अन्य बातों के साथ-साथ राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी) लिमिटेड, एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम और तीन राष्ट्रीय स्तर के उद्यमिता विकास/प्रशिक्षण स्वायत्तशासी संगठनों के काम प्रशासन, सतर्कता और प्रशासनिक पर्यवेक्षण का काम सौंपा गया है। प्रभाग अन्य कार्यों के साथ-साथ कार्यनिष्पादन और क्रेडिट रेटिंग से संबंधित योजनाओं के कार्यान्वयन और प्रशिक्षण संस्थान की सहायता के लिए भी जिम्मेदार है। एसएमई प्रभाग कार्यनिष्पादन मॉनिटरिंग और मूल्यांकन प्रणाली (पीएमईएस) के अंतर्गत मंत्रिमंडल सचिवालय द्वारा वर्ष 2009 में शुरू किए गए परिणाम-फ्रेमवर्क दस्तावेज़ (आरएफडी) तैयार करने और निगरानी के लिए भी जिम्मेदार है । एआरआई प्रभाग दो सांविधिक निकायों अर्थात खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), कयर बोर्ड और महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान (एमगिरी) नामक एक नवनिर्मित संगठन के प्रशासन का काम देखता है । यह प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के कार्यान्वयन पर भी निगरानी रखता है।

एमएसएमई को अवसंरचना और सहायक सेवाएं प्रदान करने के लिए नीतियों और विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं का कार्यान्वयन इसके संबद्ध कार्यालयों, अर्थात विकास आयुक्त का कार्यालय (010 डीसी (एमएसएमई)), राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी), खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी); कयर बोर्ड और तीन प्रशिक्षण संस्थानों, अर्थात राष्ट्रीय उद्यमिता और लघु व्यवसाय विकास संस्थान (निसबड़), नोएडा, राष्ट्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम संस्थान (एनआई-एमएसएमई), हैदराबाद, राष्ट्रीय उद्यमिता संस्थान (आईआईई) गुवाहाटी और सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत एक समिति महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिकीकरण संस्थान (एमगिरि), वर्धा ।

राष्ट्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम बोर्ड (एनबीएमएसएमई) की स्थापना सरकार द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 और इसके तहत बनाए गए नियमों के अंतर्गत की गयी थी । बोर्ड एमएसएमई के संवर्धन और विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की जांच करता है, वर्तमान नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा करता है और एमएसएमई की वृद्धि हेतु नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने के लिए सरकार को सिफ़ारिश करता है ।

विकास आयुक्त का कार्यालय [एमएसएमई]

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम- विकास संगठन (एमएसएमई-डीओ) के प्रमुख अपर सचिव एवं विकास आयुक्त (एमएसएमई) होते हैं। विकास आयुक्त का कार्यालय (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) देश में एमएसएमई के संवर्धन और विकास के लिए विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार, समन्वयित, कार्यान्वयन और निगरानी में मंत्रालय की सहायता करता है । इसके अलावा, यह 30 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों-विकास संस्थानों (एमएसएमई-डीआई); 28 एमएसएमई-डीआई-एमएसएमई परीक्षण केंद्र शाखाओं (एमएसएमई-टीसी); 7 एमएसएमई-परीक्षण केन्द्रों (एमएसएमई-टीएस); 2 एमएसएमई प्रशिक्षण संस्थानों (एमएसएमई-टीएलएस); और 1 एमएसएमई-प्रौद्योगिकी विकास केंद्र-हैंड टूल्स (एमएसएमई-टीडीसी-हैंड टूल्स) के अपने नेटवर्क के माध्यम से आम सुविधाएं, तकनीकी सहायता सेवाएं, विपणन सहायता आदि प्रदान करता है । डीसी (एमएसएमई) टूल रूम्स और प्रौद्योगिकी विकास केंद्र (2 फुटवियर प्रशिक्षण संस्थानों सहित) के एक नेटवर्क का भी संचालन करता है, जो सोसायटी अधिनियम के तहत समितियों के रूप में पंजीकृत स्वायत्त निकाय हैं। यह कार्यालय एमएसएमई क्षेत्र के लिए कई योजनाओं का कार्यान्वयन करता है, जिनका विवरण पुस्तिका में यथोचित रूप से शामिल किया गया है ।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) एक विधिविहित संगठन है, जिसकी स्थापना खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956 (1956 का 61) के तहत की गयी है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए खादी और ग्रामोद्योगों के संवर्धन और विकास कार्य में लगा है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई है । आयोग के एक पूर्णकालिक अध्यक्ष होते हैं और 10 अंशकालिक सदस्य होते हैं। केवीआईसी को प्रति व्यक्ति कम निवेश में सतत ग्रामीण गैर-कृषि रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए विकेन्द्रीकृत क्षेत्र के प्रमुख संगठनों में से एक के रूप में पहचाना गया है। यह रोजगार के अवसरों की तलाश के लिए ग्रामीण जनता के शहरी क्षेत्रों में जाने से रोकने में भी मदद करता है। केवीआईसी के मुख्य कार्य खादी और ग्रामोद्योगों के विकास के माध्यम से रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए कार्यक्रमों/परियोजनाओं/योजनाओं के कार्यान्वयन की योजना बनाने, संवर्धन, प्रबंधन और सहायता करना है। इस दिशा में, यह कौशल सुधार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, अनुसंधान एवं विकास, विपणन आदि जैसी गतिविधियां चलाता है। केवीआईसी राज्य केवीआई मंडलों, पंजीकृत संस्थाओं और सहकारी समितियों के माध्यम से अपनी गतिविधियों को समन्वित करता है। इसके अधीन देश के विभिन्न हिस्सों में फैले बड़ी संख्या में उद्योग-विशिष्ट संस्थान हैं ।

कयर बोर्ड

कयर बोर्ड, कयर बोर्ड उद्योग अधिनियम, 1953 (1953 की संख्या 45) के तहत कयर उद्योग के समग्र विकास को बढ़ावा देने और इस पारंपरिक उद्योग में लगे कर्मचारियों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए स्थापित एक वैधानिक निकाय है । कयर बोर्ड का एक पूर्णकालिक अध्यक्ष और 39 अंशकालिक सदस्य शामिल होते हैं। कयरउद्योगों के विकास के लिए बोर्ड की गतिविधियों में अन्य बातों के साथ-साथ वैज्ञानिक, तकनीकी और आर्थिक अनुसंधान और विकास गतिविधियां चलाना; निर्यात और कयर तथा कयर उत्पादों की आंतरिक खपत से जुड़े आंकड़े एकत्र करना; नए उत्पादों और डिजाइनों का विकास करना; निर्यात और आंतरिक बिक्री को बढ़ावा देने के लिए प्रचार करना; भारत और विदेशों में कयर और कयर उत्पादों का विपणन; उत्पादकों और निर्यातकों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्धा को रोकना; उत्पादों के निर्माण के लिए इकाइयों की स्थापना में सहायता करना; भूसी, कयर फाइबर, कयर यार्न और कयर उत्पादों के निर्माताओं के बीच सहकारी संगठनों को बढ़ावा देना; उत्पादकों और निर्माताओं को लाभप्रद प्रतिफल सुनिश्चित करना आदि शामिल हैं ।

बोर्ड ने कयर उद्योग, जो कि देश में कृषि आधारित प्रमुख ग्रामीण उद्योगों में से एक है, के विभिन्न पहलुओं की अनुसंधान गतिविधियों को चलाने के लिए दो अनुसंधान संस्थानों अर्थात केंद्रीय कयर अनुसंधान संस्थान (सीसीआरआई), कलवुर, एलेप्पी और केन्द्रीय कयर प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईसीटी), बेंगलूर को उन्नत किया है। कयर उद्योग की दो प्रमुख विशेषताएं इसका निर्यातोन्मुखी होना और कचरे (नारियल की भूसी) से पैसा कमाना हैं।

राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड (एनएसआईसी)

1. एनएसआईसी की स्थापना 1955 में हुई थी, इसके प्रमुख अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक होते हैं और इसका प्रबंधन निदेशक मंडल द्वारा किया जाता है।
2. निगम का मुख्य कार्य आम तौर पर वाणिज्यिक आधार पर, देश में सूक्ष्म और लघु उद्यमों के विकास को बढ़ावा देना, सहायता करना और पोषित करना है।
3. एनएसआईसी कच्चे माल की खरीद; उत्पाद विपणन; क्रेडिट रेटिंग; प्रौद्योगिकियों के अभिग्रहण; आधुनिक प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने आदि के क्षेत्रों में अपनी अलग-अलग जरूरतों को पूरा करने वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए विभिन्न प्रकार की सहायता सेवाएं प्रदान करता है ।

एनएसआईसी अपने 9 क्षेत्रीय कार्यालयों, 39 शाखा कार्यालयों, 12 उप-कार्यालयों, 5 तकनीकी सेवा केन्द्रों, 3 तकनीकी सेवा विस्तार केंद्रों, 2 सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्कों, 23 एनएसआईसी-व्यापारिक विकास विस्तार कार्यालयों और विदेश स्थित 1 कार्यालय के माध्यम से पूरे देश में अपने विभिन्न कार्यक्रमों और परियोजनाओं को कार्यान्वित करता है।