संयुक्त सचिव (एसएमई) की कलम से

पूर्वोत्तर भारत आह्वान


  • मेघालय जिले की गारों की पहाड़ियों में एक रमणीय शहर खर्कुता के दो फैशन डिजाइन स्नातकों द्वारा अनोखे और आकर्षक नाम बमबम से अपना स्वयं का बुटिक स्थापित कर पहले उद्यमीय उद्यम के गवाह बने हैं। अस्वाभाविक नाम पर वास्तव में कोई भी अपना सर पकड़ लेगा परंतु बूटस्ट्रैप बुटिक पर सावधानीपूर्वक हस्तनिर्मित डिजाइन समाज में अपनी सकारात्मक पहचान बना रहे हैं जो लोगों के बीच आत्मनिर्भरता को सक्षम बना रहे हैं, और समय पर अपने बड़े सपनों को साकार होता देख रहे हैं। ये दो डिजाइनर तीन मशीनों और तीन दर्जियों के साथ शुरू किए गए बम बम, पूर्वोत्तर क्षेत्र में उद्यमिता को विकसित करने में पहचान प्रदान करते हैं और उत्साह के साथ अग्रसर हैं तथा दूरस्थ पूर्वोत्तर को प्रोत्साहित करते हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र सात राज्यों से घिरा है। हालांकि प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि वन, तेल, चाय, पानी से धन्य है फिर भी संसाधनों की निष्क्रियता के कारण शेष भारत से लगभग दस वर्ष पीछे हैं। आर्थिक विकास के लिए इन राज्यों की विशेषता अपनी अनोखी भू-राजनीतिक स्थिति की काफी संभावना होनी है। प्रकृति के पुजारी होने के नाते जनजातीय निवासी अपनी उदासीनता दर्शाते हैं। नदियों, झरनों, धाराओं, पहाड़ी सौंदर्य होते हुए भी यह क्षेत्र ऐसा है जहाँ बहुत कम यात्री जाते हैं परंतु यह भारत का सबसे तीव्र गति से विकास करने वाला भाग है।


  • पूर्वोत्तर - स्वर्ग का अज्ञात टुकड़ा

  • वास्तव में यात्री वन्य जीवन के उत्साही और प्रकृति प्रेमियों की अत्यधिक मांग वाला गंतव्य होने के साथ-साथ पूर्वोत्तर भारत का एक अज्ञात स्वर्ग है। विभिन्न लोगों और संस्कृतियों का समावेश और विस्तृत प्राकृतिक संसाधनों सहित भारत में अत्यधिक धनी और पर्यावरण के अनुकुल क्षेत्र आठ सांसर्गिक राज्यों अर्थात् अरूणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैण्ड और त्रिपुरा का मेजबान है।

  • एमएसएमई - वृद्धि और विकास के लिए गतिप्रदाता

  • आठ पूर्वोत्तर राज्य जो 263179 किलोमीटर क्षेत्र को कवर करते हैं। उक्त भारत के कुल क्षेत्र का 8% है वह कई गंभीर विकासात्मक चुनौतियों का सामना करता है। मुख्यधारा से भौगोलिक पृथक्करण और संचार बाध्यताओं, अपर्याप्त आधारभूत सुविधाओं, कम पूंजी निर्माण, कम प्रति व्यक्ति आय इस क्षेत्र की विशेषता है। बहु-प्रतीक्षित घाटे के कारण पूर्वोत्तर क्षेत्र की संभावनाओं का पूर्णरूपेण उपयोग नहीं किया जा सका है। वर्तमान संदर्भ में उभरता एमएसएमई क्षेत्र इस क्षेत्र को बेरोजगार लोगों को न केवल नई आशा प्रदान करता है बल्कि उनका समग्र संतुलित विकास भी करता है। हाल ही में क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए भारत सरकार ठोस प्रयास कर रही है।

  • हाल ही की संचालित जनगणना के अनुसार (वर्ष 2006-07) के संदर्भ के आधार पर) जिसमें वर्ष 2009 तक के आँकड़े एकत्रित किए गए और वर्ष 2011-12 में परिणाम प्रकाशित किए गए, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा संचालित आर्थिक जनगणना 2005 से भी आँकड़े प्राप्त किए गए। पूर्वोत्तर क्षेत्र में एमएसएमई की संख्या सिक्किम सहित एमएसएमई क्षेत्र में कुल 10.64 लाख एमएसएमई हैं जो कि भारत के अन्य भागों की तुलना में पर्याप्त है। असम जिसे पूर्वोत्तर का गेटवे कहा जाता है, एमएसएमई की अधिकतम संख्या अनुमानित 6.62 लाख है जिसमें कई उद्योग जैसे चाय, कृषि और सम्बद्ध, रेशम उत्पादन और पर्यटन शामिल हैं। मणिपुर, मेघालय और अरूणाचल प्रदेश के बाद त्रिपुरा सूची में दूसरे स्थान पर है। काउण्ट डाऊन सूची में नागालैण्ड और सिक्किम उनके भौगोलिक पृथक्करण, पिछड़ापन और संचार बाध्यता के कारण क्र्मशः सातवें और आठवें स्थान पर है।

  • कौशल विकास

  • भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की अपनी कौशल आधारित अद्भूत अपेक्षाएं है जो प्राकृतिक संसाधनों, उद्योग और मूल व्यापार पर निर्भर करती हैं। यह क्षेत्र औद्योगिक रूप से पिछड़ा है और असम को छोड़कर सभी राज्यों में बड़े उद्योगों की सहायता के लिए भौगोलिक पिछड़ापन है। परिणामस्वरूप राज्य सरकार इन क्षेत्रों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के अंतर्गत प्रशिक्षण के माध्यम से युवाओं की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए कौशल विकास मिशन प्रारंभ करके इस प्रकार के रोजगार और नियोजनीयता में वृद्धि कर रही है। सरकार अपने विभिन्न संस्थानों अर्थात् गुवाहाटी स्थित भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान, गुवाहाटी, अगरतला, गंगटोक और इम्फाल में एमएसएमई विकास संस्थान और गुवाहाटी में एमएसएमई - टूल रूम (टूल रूम एवं प्रशिक्षण केंद्र) के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र में कौशल विकास को सुगम बना रहा है। एमएसएमई विकास संस्थान, गुवाहाटी को 1958 में स्थापित किया गया जो, तेजपुर, सिलचर, दीफू, ईटानगर, शिलांग और तूरा स्थित छह शाखा संस्थानों के माध्यम से असम, मेघालय और अरूणाचल प्रदेश के राज्यों में सूक्ष्म, और लघु उद्यमों के विकास का संवर्धन करता है। कई प्रशिक्षण साझेदार, शैक्षणिक संस्थानों और व्यवसायिक प्रशिक्षण केंद्र कार्यक्रम की रेंज में सक्रिय रूप से शामिल हैं जो राज्यों के लोगों की आय के स्तरों और उत्पादकता तथा आजीविका को समर्थ बनाते हैं। राज्यों की क्षेत्रीय स्कीमों के अलावा, पीएमकेबीवाई और डीडीयू - जीकेवाई जैसी अधिकतर राष्ट्रीय स्कीमों की पहल के भाग हैं। पूर्वोत्तर परिषद (एनईसी) और डोनर (डीओएनईआर) ने ‘विजन 2020’ तैयार किया है। इसमें पर्यावरण विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करते हुए उच्चतर शिक्षा संस्थानों को स्थापित करने की परिकल्पना है।

  • विकास के लिए संभावित क्षेत्र

  • इस क्षेत्र में अब तक जो सीमित औद्योगीकीकरण देखा है, वह कुछ संसाधन आधारित उद्योगों जैसे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, चाय, कोयला,जूट, वन उत्पाद, कुछ खनिज आधारित उद्योग और कुछ सूक्ष्म घरेलू सामान उद्योग जैसे हथकरघा और हस्तशिल्प पर केंद्रित रही है। संगठित क्षेत्र में चाय, पेट्रोलियम, कागज, सीमेंट, प्लाईवुड, कोयला, जूट, चीनी तथा कुछ अन्य चीजें शामिल हैं जबकि असंगठित क्षेत्र में हथकरघा और हस्तशिल्प, लघु खाद्य प्रसंस्करण ईकाई इत्यादि शामिल हैं। भरपूर खनिज आधार के साथ क्षेत्र का कच्चा माल जैसे कोयला, चूना - पत्थर, बांस, फल और सब्जियां प्राथमिक रूप से निर्यातक रहे हैं

  • पूर्वोत्तर में क्लस्टरों का संवर्धन

  • इन समस्याओं का व्यवहारिक का समाधान करने में क्लस्टर विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और एमएसएमई ईकाइयों के कार्यान्वयन का विस्तार कर सकता है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में कार्यान्वयन हेतु शुरू किए गए सभी क्लस्टर परंपरागत क्लस्टर हैं और वे मुख्यतः हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्र, सूक्ष्म, घरेलू ईकाई आधारित क्लस्टर जैसे खाद्य प्रसंस्करण, अगरबत्ती इत्यादि है।

  • पूर्वोत्तर का लाभ

  • हालांकि आज एमएसएमई पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास और संपन्नता के लिए विकास प्रक्रिया को निर्दिष्ट करने में अहम भूमिका निभाता है। क्षेत्र न केवल अपने स्वयं प्रतिपक्षों (एमएसएमई) के प्रति कड़ी लड़ाई का सामना कर रहा है बल्कि वह एमएनसी और देश के बड़े और संगठित क्षेत्र का भी सामना कर रहा है। इस क्षेत्र को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कई वस्तुओं का आयात करना पड़ता है। इसलिए इंडिया लुक ईस्ट पॉलिसी और वैश्वीकरण की प्रक्रिया में पूर्वोत्तर की अर्थपूर्ण भागीदारी के लिए एमएसएमई का तीव्र विकास एक मूलभूत पूर्वापेक्षा है। भौगोलिक स्थिति जो पूर्वोत्तर के लिए अभिशाप मानी जाती है, लुक ईस्ट पॉलिसी पर बल और सरकार की बदलती नीतियों के साथ क्षेत्र के लिए वरदान बन गई है। यदि कौशल ईकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) को उचित रूप से विकसित नहीं किया जाता है तो कौशल मांग आपूर्ति में भारी असंतुलन हो जाएगा। इस प्रकार, इस क्षेत्र में लोगों को उच्च स्तर पर साक्षर करना और राष्ट्र की आर्थिक मुख्यधारा में लाना और क्षेत्र का एकीकरण करना सकारात्मक है जो विश्व में सही मायने में भारत का पूर्वी गेटवे कहलायेगा।